Saturday 4 October 2014

चांद भाई (लघुकथा)

एम0 हनीफ मदार
(लघु कहानी)

 चांद भाई

 
 
‘‘तो इस तरह हम आपको बता चुके हैं कि चुनाव जीतने के लिए अभी हमारी सबसे बड़ी चुनौती है अल्पसंख्यकों का विश्वास जीतने की। इस दिशा में हमें क्या करना चाहिए, कैसे करना होगा। इन सवालों पर हम आपसे सुझाव लेना चाहते हैं।’’ इतना कह कर हाई कमान ने अपनी बात खत्म की और हॉल में बैठे कार्यकर्ताओं पर एक सवालिया नज़र डाली।
‘‘हमें अल्पसंख्यक वर्ग के बच्चों को फ्री शिक्षा की बात करनी चाहिए।’’ एक कार्यकर्ता ने उठ कर कहा।
‘‘हमें उनको आरक्षण दिलवाने की बात करनी चाहिए।’’ दूसरे कार्यकर्ता ने बताया।
‘‘उनकी अविकसित बस्तियों को विकसित करा देने की बात करनी चाहिए।’’ एक और कार्यकर्ता ने कहा।
कोई चौथा बोलने को था कि हाई कमान ने हाथ के इशारे से रोक दिया। ‘‘इसके अलावा कुछ और कहना हो किसी को तो ही बोले। एक भी दमदार सुझाव नहीं आया खैर..... हम लोग मीटिंग के बाद तय करके बता देंगे कि क्या कार्यक्रम है और कैसे फॉलो करना है..? ठीक है अब हमें चलना है।’’
हाई कमान चलते हुए अचानक रुके और पीछे बैठे हल्की दाढ़ी वाले कार्यकर्ता से पूछ बैठे ‘‘अरे चांद भाई आप हैं यहां तो आप ही बताइये न कैसे जीतें हम आपका विश्वास....? क्या करें...?’’ कहते हुए हाई कमान गम्भीर हो कर चांद साहब का चेहरा ताकने लगे। तभी एक आवाज आई ‘‘लेकिन सर ये तो शर्मा जी हैं.......।’’ सुनते ही हाई कमान की आंखें अजीब तरह से चमकी वे खुश होकर चांद साहब के पास आये और गर्मजोशी से हाथ मिलाया ‘‘यार आप शर्मा हैं .....।’’ और चांद साहब के गले लग गये और ऊंची आवाज में बोले ‘‘आज से इन्हें कोई चांद नहीं कहेगा ....... यार हम आज तक समझते थे कि ये तो............।’’

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