Wednesday 8 October 2014

अनीता चौधरी (कहानी )



   
(अनीता चौधरी)
                                   
 चल आ यार

    आजकल नरेश कभी भी बातचीत करते करते ही कांपने लगता है| एकदम घबरा जाता है |उसकी दिल की धड़कन बहुत तेज हो जाती है और आँखों से पानी टपकने लगता है|घर के सभी लोग उसके आसपास बैठ जाते है उसके इस तरह परेशान होने का कारण पूंछते है लेकिन उसके पास उन्हें बताने के कुछ भी नहीं होता| वह बहुत कुछ उन लोगों को अपनी आँखों से समझाना चाहता है| पर शायद वह समझा नहीं पता है या वे लोग समझना नहीं चाहते है| सब एक एककर इधर उधर निकल जाते है| वह असहाय, निरीह सा सबको देखने लगता है कि कोई तो इनमें से उसके पास बैठेगा| उसके हाथों को अपने हाथों में लेकर अपने होने एहसास कराएगा परन्तु ऐसा नहीं होता|
ये वही नरेश है जो आज से पन्द्रह साल पहले दो वक्त कि रोटी खाकर बहुत ही अलमस्त रहता था| जब से नोटों का हरा रंग उसकी आँखों में चढ़ गया तब से उसने न दिन देखा न रात| सोते जागते सिर्फ पैसा कमाने के लिए नए नए तरीके सोचता| जो पैसा कमा लिया था उससे अपनी बहोरेगिरी को भी बनाए रखने के बारे सोचता रहता| घर पूरी सुख सुविधाओं से संपन कर दिया है| किसी को चार कदम पैदल भी चलने की आवश्यकता नहीं होती या कहूँ चलना ही नहीं चाहते है| बस नहीं चलता वरना बैड से सीधे गाडी पर ही कमरे से बाहर निकले और जो दो कदम चल लेते है उनके एक हुक्म पर नौकर गाड़ी लिए दरवाजे पर तैयार खड़े रहते है| घर में बूढ़े से लेकर बच्चे तक को किसी प्रकार का कोई कष्ट नहीं| न ही भविष्य में काम करने की कोई चिंता| नरेश ने इन्हें कई पीड़ियों तक काम की  चिंता से मुक्त कर दिया| इन सब चीजों को जुटाते- जुटाते नरेश डायबिटीज, बी०  पी० और ह्रदय रोग न जाने कौन कौन सी बीमारियों का मरीज हो चुका है| उसकी उम्र अभी ज्यादा नहीं है| यही कोई पैंतालीस के आसपास होगी| जिन्दगी की  आपाधापी और पैसा कमाने की तीव्र इच्छा ने उसे सारे मित्रों से दूर कर दिया|
आज सुबह मिलने के लिए जब उसका फोन आया तो अपने आप को रोक न सका| घर से सुबह का नाश्ता किया और अपने यार से मिलने चल दिया|
दरवाजा खोलते ही गले से लिपट गया जैसे न जाने कितने वर्षों के बाद मिला हो| मैंने अपने दाहिने कंधे पर कुछ गीला होने का एहसास किया तो पाया पानी की  दो बूँदें मेरे कंधे पर गिर चुकी थी| मैंने उसे देखा और पूंछा, “यह सब क्या है नरेश? क्यों परेशान हो?” उसने अपनी निगाहें नीची कर ली और बोला, “तुमसे लिपटकर मिलाने का बहुत मन था| सुबह डरते डरते फोन किया था| पता नहीं तुम अपने काम को छोड़ कर आ पाओगे या नहीं? जब दरवाजे पर तुम्हें देखा तो अपने आप को रोक न सका और ...........
यूं तो अभी दो तीन महीने पहले ही बाजार में नरेश से मुलाक़ात हुई थी| हम दोनों ने एक दूसरे को देख भर लिया था और हाथ हिलाकर राजी ख़ुशी, ठीक-ठाक होने का सिग्नल दे दिया था| मैंने उससे बात करने के लिए अपनी बाइक रोकी भी थी लेकिन नरेश फटाफट हवा में हाथ को लहराता हुआ निकल गया था | अब हमारे बीच एक फोन ही था जो एक दूसरे से बातचीत कराकर अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभा रहा था| लेकिन आज उसे दरवाजे पर इस तरह लिपटकर रोता हुआ देखकर मैं हैरान था............
नरेश मुझे अपने साथ अन्दर वाले कमरे में ले गया और बोला, “आ जा यार यहाँ बैठकर आज ढेर सारी बातें करेंगे| बाहर वाले कमरे में लोग डिस्टर्ब करते है|” उसने सिगरेट की डिब्बी से एक सिगरेट निकाली, उसे जलाते हुए एक लंबा कश लिया और बातों का सिलसिला शुरू हो गया| नरेश आज खूब बोले जा रहा था| बीच में   आवश्यकता पड़ने पर मुझसे भी बोलने को कह देता लेकिन अगले ही पल खुद ही बोल पड़ता| आज भी वह अपनी इस आदत को बरकरार बनाए हुए था| यानी लगातार बोलते रहना| उसे पुराने रूप में देखकर मैं बहुत खुश था| आज वह मन की बहुत सारी अनछुई बातों को कह देना चाहता था| गंभीर बातों के बीच में कभी कभी वह लम्पट भरी बातें भी करता जिससे हम लोग जोर का ठहाका मार के हँसने लगते| उसका मुरझाया हुआ चेहरा अब खिलता ही जा रहा था| वह बोले जा रह था और मैं एकटक उसे देख रहा था| मुझे आज अपना वही पंद्रह साल वाला जिगरी यार मिल गया था| इन बातों के बीच समय अपनी रफ़्तार से दौड़ रहा था| मैंने घडी पर नजर डाली तो वह दोपहर के दो बजा रही थी| मुझे बहुत जोरों कि भूख लगी थी| मैंने नरेश को बीच में रोकना चाह तो बोला, “ यार थोड़ी देर और बैठ जा, चले जाना जब आज तूने मेरी वजह से अपने काम से छुट्टी ली तो यह सारा दिन इस यार का होता है|” मैंने भी कह दिया, “ चल ठीक है तू भी क्या याद करेगा किस रहीश दिल से पाला पड़ा है” और बैठ गया| उसने अपनी गोष्ठी फिर शुरू कर दी|
बीच में थोडा रुक़ कर पत्नी को आवाज लगाईं जो पास में ही रसोई में कुछ काम कर रही थी, “अरे रश्मि बहुत तेज भूख लगी है, खाना ही दे जाओ|” और फिर से  दोनों कि बहस शुरू हो गयी| छोटा बेटा आकर खाने की थाली व् पानी की बोतल रखकर चला गया| नरेश थाली को बीच में रखकर बोला, “फ़टाफ़ट लग जाओ उमाशंकर बहुत जोरों कि भूख लगी है| मैंने खाने के लिए मना किया तो बोला, “अरे वाह! मुझे भूख लग रही है तो क्या तुझे नहीं लगी होगी तू भी तो सुबह का आया है| मैं मना कर रहा था क्योंकि उसके घर को पहले से जानता था| जहाँ चाय भी, पीने वाले को सौ सौ वार कोसने पर मिलती हो| मैं इन सारी स्थितियों को भांप कर ही बोला, “ नहीं यार तू खा ले, मैं सुबह खाकर आया था और अब मैं चलना चाहूँगा|” उसने मेरा हाथ खींचकर बैठा लिया और बोला, “ चुपचाप खाना शुरू कर, रोटियों की तरफ मत देख,अभी और आ जायेंगी|” उसने रोटी का एक टुकडा तोड़ा और मेरी तरफ भी तोड़ने का इशारा किया| फिर आवाज लगाईं, “अरे रश्मि दो रोटियां और पका देना| रोटियां कम पड़ेंगी| नरेश ने मुहँ में कौर डाला ही था कि उधर से आवाज आई, “गुथा हुआ आटा इतना ही था सो पका दी, अब इन्हें ही खा लो| दोबारा आटा गूथना मेरे बस कि बात नहीं है| मुझे अभी बहुत सारा काम करना है|” नरेश के चेहरे का रंग एकदम उतर गया| वह अपने आप को मेरे सामने लज्जित सा महसूस करने लगा| मैं उसके चेहरे की हंसी को खोता हुआ नहीं देख सकता था| इसलिए जोर से ठहाका मारकर हंसा और बोला, “तुझे भी न भाभी को टीस करने में बड़ा मजा आता है| तूने आज तक चार रोटी के सिवा कभी छः रोटी खाई है जो आज खायेगा| और रही बात मेरी तो यह तू अच्छी तरह से जानता है कि मैं घर से अपने पेट का कोटा पूरा करके ही बाहर निकलता हूँ| अब तू जल्दी से खाना खा और बतियाते हुए गली के बाहर तक चलते है|” नरेश ने अनबने मन से दो रोटी खा ली| लेकिन वह सहज नहीं हो पा रहा था वह बहुत परेशान हो रहा था| मैं पहले जैसा ही अलमस्त था| उसने मेरे हाथ को पकड़ा और बोला, “यार मैं जानता हूँ तू अन्दर से बहुत आहत हुआ है| यह सब तू मुझे नार्मल करने के लिए कर रहा है|” मैंने उसके हाथ को अपने हाथ से थपथपाया और मुस्कराते हुए बोला, “हम जैसे फक्कड़ लोग किसी बात से आहात नहीं होते है| मुझे दुःख तो सिर्फ इस बात का है कि तूने अपनी जिन्दगी को जीना छोड़कर इन स्वार्थी लोगों के लिए तमाम संपत्ति इकटठी करते-करते खुद एक बीमार लाश बन गया| और आज ये लोग तेरे लिए..............खैर छोड़|
आज मैं बहुत खुश हूँ अपने आप से, कि मैं तुम्हारे जैसी इस घुटन भरी जिन्दगी से आजाद हूँ| मैं उसका हाथ छुडाकर चला जाता हूँ | नरेश काफी देर तक मेरे हाथों की वही तपिश अपने हाथों में महसूस करता है| गली के नुक्कड़ पर बने चबूतरे के सहारे टिक जाता है और दूर तक मुझे देखता ही रहता है तब तक मैं  आँखों से ओझिल नहीं हो जाता|

अनीता चौधरी
हाइब्रिड पब्लिक स्कूल
तैय्याबपुर रोड डेहरुआ रेलवे क्रासिंग
यमुनापार, पोस्ट- लोहवन
मथुरा (उत्तर प्रदेश)
फ़ोन० 08791761875
E.mail – anitachy04@gmail.com














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