Thursday 9 October 2014

राहुल गुप्ता (गज़ल)

राहुल गुप्ता
Email- rahulguptalohavan@gmail.com 




  ग़ज़ल-

मेरा जलता रहा मकां देर तक ।
देखते ही रहे हम धुंआ देर तक ।
तिश्नगी में यूँ ही हम  भटकते रहे,
पर दिखाई दिया न कुआं देर तक ।
अम्न के गीत जब गाये जाने लगे,
हो गयी मरहबां मरहबां देर तक ।
जो दुआऐं दिलों की पहुंचने लगी,
तो बरसता रहा आसमां देर तक ।
जिंदगी में ज़हालत बनी ही रही,
कोई आलिम मिला न मुआं देर तक ।
दोस्तों ने रकीबों से की यारियां,
सुलगती रही फिर फिजां देर तक ।
तोड़ डाले खिलौने यूँ ही खेलकर,
वो झगड़ता रहा खांमखां देर तक ।
मौत पर मेरी राहुल न आया कोई,
हो गयी इन्तहां इन्तहां देर तक ।

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