Tuesday 10 December 2013

हमारा हिस्सा

(हमारा हिस्सा)
यह सामने बसी हुई झुग्गी झोपड़ियाँ
जैसे एक काला दाग
आधुनिक होती हमारी सभ्यता पर
इसके गर्भ में भी
सांसें ले रहा है जीवन
शायद नहीं
वह लड़ रहा है
अपने हिस्से की साँसों के लिए
अनगिनत छोटे छोटे पाँव
बड़ते हुए
जैसे पैमाना
धरती नापने का
आज यहाँ तो कल वहाँ
अपनी ही मिट्टी में
अपने .....
अपनों से लड़ते हुए
समझ रहे हैं जीवन का अर्थ
हजारों सवाल
और आशाएं
इसी स्याह काली त्रिपाल की कोख में
शायद यही है हमारी ज़मीन
बाबा ! है न
जवाब के बदले
दूर आसमान ताकती बूढी आँखें
जहां खड़े हैं
दूध सी सफेदी मैं लिपटे
विशाल भवन
लम्बी
और सदियों सी लम्बी सांस
हाँ
इन्हीं में है हमारा हिस्सा

मेरा अपराध

(मेरा अपराध)
मैं अँधेरे में थी
मार दिया गया मुझे
उजाले में आने से पहले
मगर क्यूं
यह सोचता है मेरा छोटा और मासूम दिमाग
वह अँधेरे में भी दुलारती थी
सोते में, जब
मैं उसके कान में पुकारती थी
माँ .......माँ !
फिर क्या थी उसकी मजबूरी
क्यों हत्यारा बना मेरा बाप
क्या कुछ बता सकते हैं आप
किसी नतीजे पर पहुँचाने को
मैं बता सकती हूँ
वे सब बातें
जब तय हुआ था
मेरी मौत का ताना बाना -
लड़की है
पांच लाख दहेज़
ऊपर से इज्जत बचाने का कलेश
घर से बहार जब निकलेगी
घर की आबरू पर भी तलवार लटकेगी
कहा था मेरे बाप ने
माँ रोई थी
पढ़ लिख जाएगी
खुद कमाएगी
फिर चिंता कहाँ रह जाएगी
माँ ने बाप की इच्छा को ललकारा
तो बाप ने फिर फटकारा
क्या पढ़ लिख जाएगी
बड़ी होगी तो अपनी मर्जी से व्याह रचाएगी
सिर्फ मेरी ही नहीं
पूरे खानदान की नाक कटाएगी
फिर तू कैसे बाहर मुंह दिखाएगी
अभी कोख में है तो चुप है
बाहर आएगी तो
तेरी तरह जुबान लड़ाएगी
क्या तू सहन कर पायेगी
तू कहती है हाँ
तो समझ
आज नहीं तो कल
तू भी इस घर से निकाली जाएगी
माँ चुप थी
बाप खुश
मगर मैं आज भी परेशान
कि इन सब बातों में कहाँ आया
मेरा अपराध
क्या बता पाएंगे आप ।

नाकाव

बाज़ार
फिर फैशन
और नकाव
बिभिन्न स्वरूप और प्रकार के
अलग अलग जरूरतों
फायदा, लाभ और सम्मान के
जैसे युद्ध के अस्त्र शस्त्र
कोन सा पहनना है
कब और कहाँ
सिखाने को खुलवा दिए हैं स्कूल
अपनों ने
सिखा रहे हैं चालाकी और शिकार के तरीके
लोमड़ और भेड़िये
इंसानी भेष में
छुप कर नकाव में
जरूरत नहीं है अब
बन्दूक और तलवार की
करने को सीमा विस्तार
और पाने को उपलब्धियां
बस लेना है एक सफ़ेद नकाव
जो होगा मल्टीपर्पज
जरूरत के हिसाब से
बदलता है जो रंग
खरीद लिए हैं
वही नकाव
इसने उसने यहाँ और वहां
कर रहे हैं शिकार
निहत्थी भीड़ का
बन रहे हैं निवाला
जिन पर नहीं है
कोई नकाव
लेकिन ये हद है.......
अंत नहीं
बदल रहे हैं चश्मे
कर पाने को फर्क
इन्सान और भेड़िये का
नोंचेगी एक दिन
यही भीड़
सारे नकाव ।





तू चल आधी दुनिया

ये रास्ते
ऊबड़ खाबड़
कहीं कहीं कांटे और गोखुरू
छोटे छोटे पत्थर
और पहाड़
मंजिल है
इन सब के उस पार
सदियों से तो चली आ रही है तू
अविचल, निडर
बड़े हौसले और गंभीर धैर्य के साथ
कभी मापी नहीं तूने
अपने पैरों से नापी हुई दूरी
बस चलते रह कर
बिना थके और रुके
न केवल अपने लिए
आवाजें, उम्मीद और आशाओं की
आधी दुनिया
गुजरती हैं तुझमें होकर
तब तेरा रुकना
यहाँ आकर
जब
एक पहाड़ का फासला भर है
पूरे होने में
आधी दुनिया के सारे ख्वाब
देख पीछे घूम कर
सदियों सी दूरी तय कर चुकी है तू
हाँ..... बिलकुल
तूने ही तय की है ये दूरी
ले हौसला इसी से
भर फिर वही सांस
जो भरी थी सदियों पहले तूने कभी
उसी आधी दुनिया के लिए
आज भी
उसी हिम्मत के साथ
तू चल.. चल... चल..
हनीफ मदार

रोबोट

रोबोट
एक मशीन
संवेदनहीन
न थकने बाली
न हारने बाली
जब तक बैटरी में बची है उर्जा
रोबोट
दिखने में जैसे आदिम
न कोई सवाल
न जबाव
कोई विचार नहीं
जैसे देखता हो सब कुछ
लेकिन नहीं
देखेगा बस उतना
जितना बताया या सिखाया गया
रोबोट
जिस पर फर्क नहीं पड़ता
कत्ले आम होने का
बम विस्फोटों का
उसका दिल नहीं पसीजता
माँ की लाश पर आँचल तलाशते बच्चे को देखकर
चीख कराहटें भी
नहीं सुनता वह
जलते मानव गोस्त की दुर्गन्ध
विचलित नहीं कर पाती उसे
रोबोट
मानव स्वरूप में
जैसे सेवक
न कोई स्व न स्वाभिमान
न कोई धर्म न पहचान
न कोई मान न अपमान
न कोई गम न ख़ुशी
न महबूब न महबूबा
न सपने न आकांक्षा
बस काम और काम और काम
रोबोट
लॉस प्राफिट से बेखबर
क्या खोया क्या पाया से अनजान
हर पल बस इंतजार
रिमोट की कमांड का
यानी मालिक का हुक्म
कितना घूमना है
कितना चलना
कितना बैठना है
कितना उठाना
जीवन मालिक के हाथ
जब तक चलेगा
होता रहेगा बस इस्तेमाल
रोबोट
कभी दुर्लभ था
देश के लिए
सरकारें चिंतित
पिछड़े हुए वर्तमान से
फिर उदारवाद
और लगने लगीं विदेशी कम्पनियां
विभिन्न आकर्षक नाम
और पहचान कालेज इन्स्टीटिऊट की
देश के विकास और प्रगति के प्रतीक
पैदा कर रहे हैं अनगिनत रोबोट
शत प्रतिशत खूबियों के साथ
मय सर्टिफिकेट के
अतीत को जाना नहीं
वर्तमान को समझे बिना
बस दौड़ रहे हैं
अनजान भविष्य की और
सड़कों पर गलियों में
रोबोट रोबोट रोबोट ।
हनीफ मदार