Tuesday, 10 December 2013

मेरा अपराध

(मेरा अपराध)
मैं अँधेरे में थी
मार दिया गया मुझे
उजाले में आने से पहले
मगर क्यूं
यह सोचता है मेरा छोटा और मासूम दिमाग
वह अँधेरे में भी दुलारती थी
सोते में, जब
मैं उसके कान में पुकारती थी
माँ .......माँ !
फिर क्या थी उसकी मजबूरी
क्यों हत्यारा बना मेरा बाप
क्या कुछ बता सकते हैं आप
किसी नतीजे पर पहुँचाने को
मैं बता सकती हूँ
वे सब बातें
जब तय हुआ था
मेरी मौत का ताना बाना -
लड़की है
पांच लाख दहेज़
ऊपर से इज्जत बचाने का कलेश
घर से बहार जब निकलेगी
घर की आबरू पर भी तलवार लटकेगी
कहा था मेरे बाप ने
माँ रोई थी
पढ़ लिख जाएगी
खुद कमाएगी
फिर चिंता कहाँ रह जाएगी
माँ ने बाप की इच्छा को ललकारा
तो बाप ने फिर फटकारा
क्या पढ़ लिख जाएगी
बड़ी होगी तो अपनी मर्जी से व्याह रचाएगी
सिर्फ मेरी ही नहीं
पूरे खानदान की नाक कटाएगी
फिर तू कैसे बाहर मुंह दिखाएगी
अभी कोख में है तो चुप है
बाहर आएगी तो
तेरी तरह जुबान लड़ाएगी
क्या तू सहन कर पायेगी
तू कहती है हाँ
तो समझ
आज नहीं तो कल
तू भी इस घर से निकाली जाएगी
माँ चुप थी
बाप खुश
मगर मैं आज भी परेशान
कि इन सब बातों में कहाँ आया
मेरा अपराध
क्या बता पाएंगे आप ।

No comments:

Post a Comment