Tuesday, 10 December 2013

हमारा हिस्सा

(हमारा हिस्सा)
यह सामने बसी हुई झुग्गी झोपड़ियाँ
जैसे एक काला दाग
आधुनिक होती हमारी सभ्यता पर
इसके गर्भ में भी
सांसें ले रहा है जीवन
शायद नहीं
वह लड़ रहा है
अपने हिस्से की साँसों के लिए
अनगिनत छोटे छोटे पाँव
बड़ते हुए
जैसे पैमाना
धरती नापने का
आज यहाँ तो कल वहाँ
अपनी ही मिट्टी में
अपने .....
अपनों से लड़ते हुए
समझ रहे हैं जीवन का अर्थ
हजारों सवाल
और आशाएं
इसी स्याह काली त्रिपाल की कोख में
शायद यही है हमारी ज़मीन
बाबा ! है न
जवाब के बदले
दूर आसमान ताकती बूढी आँखें
जहां खड़े हैं
दूध सी सफेदी मैं लिपटे
विशाल भवन
लम्बी
और सदियों सी लम्बी सांस
हाँ
इन्हीं में है हमारा हिस्सा

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