Tuesday 10 December 2013

तू चल आधी दुनिया

ये रास्ते
ऊबड़ खाबड़
कहीं कहीं कांटे और गोखुरू
छोटे छोटे पत्थर
और पहाड़
मंजिल है
इन सब के उस पार
सदियों से तो चली आ रही है तू
अविचल, निडर
बड़े हौसले और गंभीर धैर्य के साथ
कभी मापी नहीं तूने
अपने पैरों से नापी हुई दूरी
बस चलते रह कर
बिना थके और रुके
न केवल अपने लिए
आवाजें, उम्मीद और आशाओं की
आधी दुनिया
गुजरती हैं तुझमें होकर
तब तेरा रुकना
यहाँ आकर
जब
एक पहाड़ का फासला भर है
पूरे होने में
आधी दुनिया के सारे ख्वाब
देख पीछे घूम कर
सदियों सी दूरी तय कर चुकी है तू
हाँ..... बिलकुल
तूने ही तय की है ये दूरी
ले हौसला इसी से
भर फिर वही सांस
जो भरी थी सदियों पहले तूने कभी
उसी आधी दुनिया के लिए
आज भी
उसी हिम्मत के साथ
तू चल.. चल... चल..
हनीफ मदार

No comments:

Post a Comment