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गजल-
वो खुश है, इनायत कर रहा है ।
असल में, सियासत कर रहा है ।
असल में, सियासत कर रहा है ।
उसे यकीं है, हम यकीन कर लेंगे, राहुल गुप्ता
इसीलिए, हिमाकत कर रहा है ।
इसीलिए, हिमाकत कर रहा है ।
ज़िन्दगी के रंग को बेरंग कर,
कागजों पै ही, नफासत कर रहा है ।
कागजों पै ही, नफासत कर रहा है ।
रास्तों को रौंद कर, बढ़ता गया,
देखकर मंजिल, नजाकत कर रहा है ।
देखकर मंजिल, नजाकत कर रहा है ।
वो हमारी मेहरबानी पर पला,
और हमसे ही, अदावत कर रहा है ।
और हमसे ही, अदावत कर रहा है ।
बेच कर इंसानियत के भाव को,
नफरतों की अब, तिजारत कर रहा है ।
नफरतों की अब, तिजारत कर रहा है ।
मन तो चाहता है उसी का साथ दूँ,
पर मिरा दिल है, बगावत कर रहा है ।
पर मिरा दिल है, बगावत कर रहा है ।
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