Monday 6 October 2014

अनीता चौधरी (कविता)

अनीता चौधरी 
 

मैं क्या हूँ


                                                                  चली जा रही हूँ अकेली
  घने जंगलों कि  तरफ,
सुकून की  तलाश  में
देखती हूँ सूखे हुए वृक्ष
जिनके सारे पत्ते झड़ चुके हैं|
सूखे पत्तों पर चलने की
भयानक      आवाजें,
लौटती हूँ   फिर वहीँ |
पाती हूँ   स्वयं को
उन  सबके    बीच
जो,
मंगाते   हैं   मुझसे
अपनेपन   की कीमत
थक  चुकी  हूँ  मैं
बैठ  जाती  हूँ वहीँ
और बुझती हूँ अपने अंतर्मन से,
मैं    क्या  हूँ ?
 

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