Tuesday 7 October 2014

आशिका सिवांगी सिंह (कविता )

आशिका सिवांगी सिंह
 

सवाल

आज मैंने नज़र डाली
कुछेक अजीब पर सच्चे सवालों पर
जब झोपड़ी की छत से
टप-टप-टप गिर रही थीं बूंदें
सिमटकर बैठा परिवार जवाब चाहता है
एक पक्की छत उनके नाम क्यों नहीं ?
घर में जिसे कमाना था
उस लाचार पिता का दर्द जवाब चाहता है
क्यों उसे कमाने को काम नहीं ?
किनारे तन पड़ी खाट पर लेटी
बूढ़ी दादी का अंग अंग जवाब चाहता है
उन्हें दवाइयां नसीब क्यों नहीं ?
मां दिन रात मेहनत में पसीना बहाती है
वह पसीना जवाब चाहता है
कब वह सूखा पड़ ठंडक देगा उस जान की जान को ?
द्वार द्वार भटकती वह बहन
सिर्फ पेट के लिए
उसका पेट जवाब चाहता है
क्यों उसे दो वक्त की रोटी नसीब नहीं ?
जिसे इस उम्र में पढ़ना था
उस भाई की आंखें तपती भट्टी के आगे नम हैं
उसकी आंखें जवाब चाहती हैं ?
क्यों उन्हें दो अक्षर पढ़ने का वक्त ओर हक नहीं ?
मुझे भी जवाब एक चाहिए
क्यों किसी को सिर उठाकर चलने का
अधिकार नहीं इस उद्योग - ए - वक्त में ?

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