Thursday 9 October 2014

अनीता चौधरी (कविता)

                                                                                                                                 अनीता चौधरी
Email- anitachy04@gmail.com

आधुनिक लड़की

  जीन्स पर कट स्लीव टॉप
आँखों पर बड़े लैंस का सफ़ेद चश्मा
कन्धों पर झूलते घुंघराले घने बाल                                            
और एक हाथ में
किताबों से भरा लटकता हुआ पर्स
कान पर लगाए मोबाइल
बतियाती हुई निकल जाती है
गली से बाहर
तेज हवा की तरह
मैं करता हूँ उसका पीछा दूर तक
कि
वह देखेगी मुझे पीछे मुड़कर
पर नहीं देखती वह
चलती जाती है अपने पूर्ण आत्मविश्वास के साथ
अपने मित्रों के अनुसार
मैं भी चाहता हूँ उससे बतियाना
पास बैठकर उसको छूना
हर कीमत के साथ
लेकिन, अब कुछ दिनों से
दिखाई नहीं देती वह
मैं ढूंढ़ता हूँ उसे
देखना चाहता हूँ एक झलक उसकी
अपनी प्रबल इच्छा के साथ
तभी, सुनाई देता है एक शोर
गली के बाहर
चली आती है एक भीड़
हाथों में तख्ती लिए
मेरी तरफ
भीड़ में है सबसे आगे
मेरी वह कल्पना
हाथ में झंडा लिए
जिस पर लिखा है
नहीं सहेंगे अब अत्याचार
स्त्री , पुरुष एक समान
हम भी है आखिर इन्सान
मैं , उस भीड़ को
जाता हुआ देखता रहा
स्वर मेरे कानों में
देर तक गूंजते रहे
अब अक्सर दिखाई देती है वह
कभी विचार गोष्ठियों में
मजदूरों के सम्मेलनों में
तो कभी दलित बस्तियों में |
 

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