Saturday 4 October 2014

हैडलाइन (लघुकथा)

एम0 हनीफ मदार
 (लघु कहानी)

हैडलाइन


 
‘तोरा मन दर्पण कहलाए...... भले बुरे सारे कर्मों को देखे और दिखाए.......’ रिंग टॉन के रूप में सिंह साहब के फोन पर यह गाना बजने लगा। सिंह साहब ने फोन देखा और कान पर लगाया..... ‘‘जी सरकार...! क्या आदेश है.......?’’
‘‘अरे यार परसों हाई कमान आ रहे हैं...... कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करने के लिए मीटिंग बुलाई है....।’’
‘‘सरकार मेरे लिए क्या आज्ञा है उसे बताओ.........?’’
‘‘भाई ऐसा है कि वे यहां नाइट स्टे करेंगे....... तो .......!’’
‘‘समझ गया सरकार......बस इतना बता दो माल देशी हो या विदेशी..........!’’
‘‘देशी ही भिजवा दो यार ....... विदेशी को बचा रखो.... कुछ हमारा भी तो ख्याल रखो......!’’
‘‘होटल का कमरा नं0 फोन पर मैसेज कर देना... और..... आपसे कहना क्या... बस...... प्रसाद ठीक-ठाक भिजवा देना।’’
‘‘परेशान न हो.......!’’
‘‘ओ के सरकार......।’’ कह कर सिंह साहब ने फोन काट दिया ।
सिंह साहब ने कपड़े पहने और दीनपुर गांव की ओर चले गये और कुछ घंटों में ही वापस आ गये। दूसरे दिन घर लौटते-लौटते सिंह साहब को शाम हो गई। पत्नी ने पूछा ‘‘आज छुट्टी वाले दिन भी सुबह से गायब रहे..... कहां गये थे...?’’
‘‘अरे आज कई जलसे, जुलूसों और मीटिंगोंं में शामिल रहा।’’
‘‘कैसे जलसे, जुलूस........?’’
सिंह साहब कुछ बोलते कि फोन फिर से बजा ‘तोरा मन दर्पण कहलाए......’ सिंह साहब ने फोन उठाया ‘‘हां सरकार हो गया...।’’
फोन कटते ही पत्नी ने फिर पूछा ‘‘बताया नहीं कोन सा जुलूस ?’’
‘‘सुबह अखबार की हैडलाइन में देख लेना ...।’’ कह कर सिंह साहब कपड़े उतारने में व्यस्त हो गये।
सुबह अखबार में दंगा पीडि़तों के समर्थन में निकले जुलूस में सबसे आगे झंडा लेकर चलते हुए सिंह साहब अपना फोटो पत्नी को दिखा रहे थे। बगल में छपी खबर उनकी हथेली से दब गई थी जिसमें लिखा था दीनपुर गांव की एक और लड़की ने की आत्म हत्या।

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