Tuesday 10 December 2013

नाकाव

बाज़ार
फिर फैशन
और नकाव
बिभिन्न स्वरूप और प्रकार के
अलग अलग जरूरतों
फायदा, लाभ और सम्मान के
जैसे युद्ध के अस्त्र शस्त्र
कोन सा पहनना है
कब और कहाँ
सिखाने को खुलवा दिए हैं स्कूल
अपनों ने
सिखा रहे हैं चालाकी और शिकार के तरीके
लोमड़ और भेड़िये
इंसानी भेष में
छुप कर नकाव में
जरूरत नहीं है अब
बन्दूक और तलवार की
करने को सीमा विस्तार
और पाने को उपलब्धियां
बस लेना है एक सफ़ेद नकाव
जो होगा मल्टीपर्पज
जरूरत के हिसाब से
बदलता है जो रंग
खरीद लिए हैं
वही नकाव
इसने उसने यहाँ और वहां
कर रहे हैं शिकार
निहत्थी भीड़ का
बन रहे हैं निवाला
जिन पर नहीं है
कोई नकाव
लेकिन ये हद है.......
अंत नहीं
बदल रहे हैं चश्मे
कर पाने को फर्क
इन्सान और भेड़िये का
नोंचेगी एक दिन
यही भीड़
सारे नकाव ।





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